कैसी है ये विपदा, जिसकी है दुगुनी गति,
हर तरफ पानी से हो रही क्षति|
कारण किसी ने जाना नहीं, जिम्मेदार खुद को माना नहीं,
ना समझी हमसे बड़ी हुई, जो नाराज़ हमसे प्रकृति हुई|
कैसी है ये विपदा, जिसकी है दुगुनी गति,
हर तरफ पानी से हो रही क्षति|
कारण किसी ने जाना नहीं, जिम्मेदार खुद को माना नहीं,
ना समझी हमसे बड़ी हुई, जो नाराज़ हमसे प्रकृति हुई|
धर्म ये इतना सरल नहीं है, ख़ुशी से बीते जीवन सारा, इसमें जीने का ये हल नहीं है,
मोह माया से बचके रहते, सांसारिक बंधन इसकी पहल नहीं है|
अलग अलग युगो में शिक्षा देने, भिन्न भिन्न संस्थापक आये थे,
अहिंसा और अपरिग्रह का ज्ञान दे गए, २४वे संस्थापक महावीर कहलाये थे|
बैसाखी का दिन निराला, स्थापना के साथ साथ, सिखों को दिया सिंह नाम है,
मुण्डे पर जचता पगड़ी और धोती कुरता, पटियाला सूट कुडियो की पहचान है|
भांगरे से ताल मिलाकर जब जब ढोल नगाड़ा बजता है,
एक जुट होता जन-समूह ये सारा, रंग बिरंगा हिंदुस्ता मेरा सजता है|
दिन चर्या जो चल रही आज की, गौर न कोई फ़रमा रहा,
कोई हँसे अपने फैट पर, कोई पतले होने पर शरमा रहा|
कोई खुद को परफेक्ट समझ रहा, कोई gym जाने को गरमा रहा,
लेकिन एक अच्छी प्रक्रिया को, कोई न अपना रहा|
साल में आते चार नवरात्री, किसको दे दू प्रथम स्थान,
चारो ही किसी न किसी रूप में, कर रहे जान-मानव कल्याण|
दो तो आये गुप्त रूप से, आषाढ़ और माध के महीने में,
चैत्र और आश्विन को हम पूजे, जैसे सजती अंगूठी हीरे के नगीने में|
शिव रात्रि के इस पर्व पर हम शिव के भक्त तो बन जाते है,
पर जितना त्याग किया शिव ने,
उसका थोड़ा ऋण भी चूकाते है|
विष का प्याला पी गए वो,
जन जन को माहुर से बचाने को,
पर हर ज़ीवा हलाहल उगल रही,
खुद की शैली दिखाने को|
शत शत नमन लिख लिया सबने Facebook और whatsapp पर,
पर क्या कोई सोच रहा, हालत परिवार की उस सैनिक के घर पर|
राजनेता सबसे आगे वैसे तो चढ़ कर आते है,
फिर क्यों न खुद के महल से, अपने पुत्रो को देश की रक्षा में लगाते है|
आज़ादी का था जो दीवाना, सुभाष चंद्र जी नाम है,
आज इनकी जयंती पर, इन्हे शत-शत प्रणाम है|
सबकी कोशिशों को नाकाम किया था,
अंग्रेजो को सरेआम किया था,