“निस्चल प्रेम स्वरुप,
कृष्ण-राधा रूप ”
चल – कपट – ईष्र्या, मोह – माया का संगम होता है,
आत्मा की शुद्धि का पता नहीं, बस लिपस्टिक से सजी काया का मनन होता है।
एक है राधा जिसने प्रेम को सब कुछ माना है,
फेरो के बंधन बंधी नहीं, फिर भी कृष्ण को अपना माना है,