ज़ज़्बातो से इकरार किया था,
झुकी नज़रो से स्वीकार किया था,
कोई यन्त्र नहीं बना मापने के लिए,
इतना तुमसे प्यार किया था |
कहते है ग्रहण सभी को लगता है.
चाहे सूरज हो या चाँद,
हम भी कैसे बच पाते,
है तो आखिर मामूली एक इंसान |
गीली आँखों से उस अंधियारे को भी स्वीकार किया था,
दुनिया पागल कहती थी हमको, उस हद तक तुमसे प्यार किया था |
पर तुम वो शख्स नहीं, जिसे कदर अरमानो की हो,
भावना हमारी पैर की जूती और शब्दों की वक़त जैसे फैके हुए सामानो की हो,
टुकड़े टुकड़े हुआ है दिल हमारा, तुम्हारे बर्ताव से,
बिखरे है हर तरफ दिन तुम्हारे साथ के,
जैसे बारिश भी सिर्फ बर्फ के दानो की हो,
हर क्षण पिघलना भी स्वीकार किया था,
नफरत हो गयी है खुद से इतना तुमसे प्यार किया था |
“हमने तुमको जान कहा, तुमने कहा जान ले लेंगे,
हमने माथा चुम लिया, तुमने कहा दीवार पर चिपका देंगे,
हमने तुम्हे देव का उद्बोधन दिया, तुमने गालियों की बौछार कर दी,
दुखो को सीने में बंद कर ताला लगा लिया था, तुमने तो हमारी खुशियों की नीलामी सरे बाज़ार कर दी |”
डॉ सोनल शर्मा